Brinjal Forming: चर्चा की जाए अगर Brinjal Forming की तो देश में बैगन की खेती किसानों द्वारा की जाने वाली आलू और टमाटर के बाद एक प्रमुख फसल है। किसानो भाइयों के कहने के अनुसार बैंगन की सब्जी भी सबसे ज्यादा खपत होने वाली सब्जियों में से एक सब्जी है।
अगर बैंगन की खेती (Brinjal Forming) की फसल के बारे में जाने तो यह जो है वो प्राचीन समय से ही चली आ रही है। बैंगन को कई रूपों में लोग प्रयोग करते हैं। जैसे की भुर्ता, कलौंजी, व्यंजन तथा सब्जी इत्यादि।
पौष्टिकता के नजरिए से अगर देखा जाए तो बैंगन की सब्जी में भी टमाटर के अनुरूप पौष्टिकता पाई जाती है। बैंगन की पतियों की विशेषता के बारे में अगर जिक्र किया जाए तो बैंगन के पत्तियों में विटामिन- सी की मात्रा पाई जाती है। जिसके सेवन से कब्ज वाले लोगो को राहत प्रदान होती है।
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Brinjal Forming हेतू भूमि चुनाव एवम उनकी तैयारी
Brinjal Forming: Brinjal Forming हेतू मिट्टी के विषय पे अगर विचार किया जाए तो बैंगन की अच्छी उपज के खेती हेतू गहरी दोमट मिट्टी। जिसमे जीवांश की प्रयाप्त मात्रा में अंश शामिल हो। जहां से सिंचाई एवम जल निकासी की सरल रूप में व्यवस्था हो। वह मिट्टी Brinjal Forming के लिए बेहतर मानी जाती है।
बलुई दोमट मिट्टी पर बैंगन की फसल शीघ्र रूपी आसानी पूर्वक अत्यधिक मात्रा में तो प्राप्त हो जाती है। परंतु इस मिट्टी पर वानस्पतिक वृद्धि जो है वो बहुत ही कम मात्रा में उपलब्ध होती है। जिसके उपरांत बैंगन की फसल बलुई मिट्टी पर करने से बहुत ही कम मात्रा में हमें पैदावार देखने को मिलता है।
साथ ही साथ अगर हम आपको चिकनी मिट्टी के बारे में जानकारी दे तो बता दे की इस मिट्टी पर Brinjal Forming जो है उसमे फसल की उपज बहुत ही देर से पाई जाती है। जबकि वानस्पतिक वृद्धि अत्यधिक रूप में देखने को मिलती है और उत्पादन जो है वह मध्य रूपी पैदावार देती है। इसीलिए लोग दोमट मिट्टी पर बैंगन के फसल का उत्पादन करना बहुत ही उचित एवं सही समझते हैं एवं दोमट मिट्टी का चुनाव उचित समझते हैं।
Brinjal Forming की प्रक्रिया में भूमि को तैयार करने हेतू सबसे पहले डिस्क हैरो रोटावेटर से अच्छी तरह से भूमि स्थल को वहीं रूपी जुटा करवा लेनी चाहिए उसके तत्पश्चात और तीन से चार बार उस जमीन की जुताई कल्टीवेटर मशीन के द्वारा करवा देनी चाहिए। जिससे वहां की जमीनी स्थल खेती करने के योग्य पूर्ण रूप से तैयार हो जाए।
Brinjal Forming हेतू उन्नत रूपी बीज के प्रकार
Brinjal Forming हेतू उन्नत रूपी बीज के प्रकार हमारे द्वारा आपको बताए गए हैं । जो की आप सभी किसान भाइयों के लिए काफी बेहरीन साबित होने वाला है। इन बीजों को उपयोग में लाकर के अधिक से अधिक मात्रा में फसलों के पैदावार में वृद्धि कर सकते हैं।
उन सभी बीजों के नामकरण निम्नलिखित रूप में उल्लेखित है:-
- पंजाब सदाबहार
- स्वर्ण प्रतिभा
- स्वर्ण श्यामली
- काशी तरु
- काशी प्रकाश
- पूसा परपल लॉग
- पंत सम्राट
- पंत ऋतुराज
- काशी संदेश
- पूसा हाइब्रिड- 6
- रामनगर जईट
खेतो में बीज बुआई एवम रोपण विधि
Brinjal Forming:- खेतों में बीज बुवाई की प्रक्रिया को अपनाने हेतु सबसे पहले अपने खेतों में क्यारियों को तैयार कर लेंगे। तैयार की गई क्यारियों में सड़े हुए गोबर या वर्मी कंपोस्ट खाद को अच्छे तरह से मिक्स कर देंगे।
उसके बाद क्यारियों को अच्छी तरह से मलचिंग पेपर द्वारा धक देंगे। क्यारियों को ढकने के बाद उस खेत में अच्छी तरह से क्यारियों के बीच-बीच में नाली बना लेंगे । जिसमें अच्छी तरह से पानी का रिसाव सिंचाई के समय हो सके।
उसके ऊपर हम नर्सरी से तैयार किए हुए उन्नत किस्म के बीज के छोटे-छोटे पौधों को ला करके तैयारी किए हुए क्यारियों के ऊपर 3 फीट से लेकर के 4 फीट की दूरी पर हम प्रत्येक पौधा को लगाएंगे। क्यारियों के ऊपर लगाए हुए पौधों के जड़ पर अच्छी तरह से मिट्टी का चढ़ाव कर देंगे। ताकि पौधा नीचे की तरफ झुके या गिरे नहीं।
Brinjal Forming हेतू खाद एवम उर्वरक की मात्रा को डालने की प्रक्रिया
Brinjal Forming:- Brinjal Forming के लिए अगर हम खाद एवं उर्वरक की मात्रा को अपने खेतों में डालने की बात करें तो वहां की स्थानीय जलवायु, मिट्टी तथा बीजों के किस्म पर निर्भर करती है। अपने खेत की आवश्यकता अनुसार हम बीज को बुवाई करने से पहले खेत को तैयार करने के समय ही वर्मी कंपोस्ट या सड़े हुए गोबर का उपयोग अच्छे तरह से कर लेंगे।
जो खाद के रूप में बहुत ही फायदेमंद होगा। अगर हमारे किसान भाई तत्व के रूप में अगर खाद्य पदार्थ का उपयोग करना चाहते हैं तो अपने खेतों में नाइट्रोजन फास्फोरस एवं साथ ही साथ पोटाश की मात्रा खेत के अंतिम जुताई के दौरान खेत के अनुरूप खरपतवार नियंत्रण के लिए उपयोग में ले सकते हैं।
Brinjal Forming हेतू सिंचाई की विधि
Brinjal Forming:- Brinjal Forming में तैयार बीजों के पौधों को रोपाई के बाद 2 दिन से लेकर के 3 दिन तक सुबह में एवं शाम में हल्का-हल्का फुहारा से पौधों की सिंचाई करेंगे। ताकि पौधा जमीन को अच्छी तरह से जकड़ ले एवं बाद में आवश्यकता अनुसार मौसम के अनुरूप क्यारियों में लगातार सिंचाई करते रहें।
अगर गर्मी का मौसम है तो एक सप्ताह से 10 दिन पर पौधों की सिंचाई करें एवं सर्दी का मौसम है तो 15 से 20 दिन पर खेतों की सिंचाई करते रहें। अगर बरसात का दिन आता है तो बारिश के समय खेत में लगे हुए पानी को निकालने के लिए नालियों के द्वारा समुचित रूप से व्यवस्था किसान भाई अच्छी तरह से कर दे ताकि पानी खेतों में ना लगे। आसानी पूर्वक बाहर निकल जाए एवं पौधा सड़ने गलने से बच जाए।
बैंगन का पौधा में फल लगने के बाद वह काफी तेजी से वृद्धि करता है इस बात को ध्यान में रखते हुए पौधों के जड़ पर 25 से 30 दिन के बीच में निराई एवं गुड़ाई करते रहें। जिससे कि पौधों में लगे हुए बैगन तथा पौधा टूटने एवम गिरने से बच जाए
Brinjal Forming की प्रक्रिया में 40 से 50 दिन के उपरांत खेत से खरपतवार को अच्छी तरह से चुन करके निकाल के बाहर फेंक देना चाहिए। ताकि पौधों की वृद्धि में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न ना हो सके।
ऐसा न करने पर संपूर्ण रूप से पोषक तत्व जो होते हैं उसे खर पतवार अवशोषित कर लेते हैं। जिससे बैंगन की खेतों में बैंगन के पौधों को विशिष्ट रूप से पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं और पौधा सूखने का ज्यादा से ज्यादा उम्मीद रहता है।
Brinjal Forming के दौरान पौधो में लगने वाले कीट
- तना एवम फल छेदक कीट
- हरी फुदका (जैसिड) कीट
- लाल स्पाइडर माइट
कीटनाशक
Brinjal Forming:- जैसा कि आप सभी ने ऊपर देखा कि बैंगन की खेती करने के दौरान फसलों में कीट लग जाते हैं। जो कि हमारे फलों को नष्ट कर देते हैं। हमारे फल नष्ट ना हो उनके लिए हमें कीटनाशक रासायनिक पदार्थ का उपयोग करके फसलों के पौधों पर छिड़काव करना चाहिए। जिससे हमारे फसलों में लगे हुए फल एवं पौधे दोनों बच सके।